सोमवार, 1 जून 2020

राजनीति में गणेश परिक्रमा एवं एक व्यक्ति के चेहरे पर बढ़ता भरोसा, राजनितिक दलों के पतन का कारण

नेताओं की गणेश परिक्रमा नहीं जनता से सीधा जुड़ाव है असल राजनीति

एक व्यक्ति के चेहरे से नहीं स्वयं के चेहरे पर लड़े चुनाव,जीत के लिए लझ्य बड़ा होना आवश्यक

सम्राट कुमार

राजनीतिक में खास करके जब किसी पार्टी की सरकार होती है तो उनके समर्थकों में एक भरोसा होता है अपने नेतृत्व के प्रति। कभी-कभी कुछ करिश्माई चेहरे जैसे लालू प्रसाद यादव,नीतीश कुमार, जयललिता, और हालिया प्रकरण नरेंद्र दामोदरदास मोदी ऐसे व्यक्तित्व के साथ अपनी राजनीतिक पारी को शुरू किए की पार्टी नित्य नए आयाम को गढ़ती चली गई। समर्थकों को यह भरोसा हो चला कि वह बगैर मेहनत किए अपने पार्टी नेतृत्व के भरोसेमंद और जनप्रिय छवि के आधार पर चुनाव जीत सकते हैं।
दरअसल किसी भी पार्टी के हाशिए पर जाने में पार्टी समर्थकों की यही सोच सबसे बड़ी कारण बन जाती है।
जब विद्यार्थी अपनी मेहनत के स्थान पर नकल और अपने अभिभावक के उच्च प्रभाव के कारण अपने परिणाम को सुनिश्चित पाता है तू उसकी सीखने की क्षमता घट जाती है और यहीं से शुरू होता है उसका नैतिक और सामाजिक पतन।
कुछ इसी प्रकार के कारक राजनीतिक दलों के लिए भी सत्ता से दूर होने का वजह बन जाता है।
इसका हालिया प्रमाण भाजपा के 6 साल के शासन में प्रमाणित हुआ है। एक समय भारत के राजनीतिक नक्शे पर करीब 84 परसेंट आबादी केसरिया रंग में रंग चुकी थी, लेकिन कार्यकर्ताओं और चुनाव लड़ने वाले नेताओं के केंद्रीय चेहरे पर निर्भर होने की कारण  वह धीरे-धीरे अब करीब 48 फ़ीसदी पर शासन पर सिमट चुकी है।
राजनीतिक का मूल मंत्र मेरे अनुसार 123 होता है।
1 अर्थात एक लक्ष्य का चयन।
2 अर्थात अपने मेहनत के साथ-साथ कार्यकर्ताओं को भी सामने के परीक्षा के लिए पूर्णरूपेण स्वयं पर निर्भर होना और करना।
3 अर्थात लक्ष्य के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल के सिद्धांत का प्रतिपादन। अर्थात चुनाव जीतने के लिए मानसिक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक तीनों ही स्तर पर बढ़त बनाने का प्रयास इस रूप में कि चुनाव को जीतना ही नहीं अपितु अपने अलावे सभी उम्मीदवारों का जमानत जप्त करवा देना है इसका भरसक प्रयास स्थानीय स्तर पर हो।

कहने का तात्पर्य कि अगर आप 100 मीटर की दौड़ में भाग लेना चाहते हैं और तैयारी भी 100 मीटर की करते हैं तो संभव है की प्रतिस्पर्धा के दिन शारीरिक या मानसिक किसी भी कारण से आप 80 मीटर या 90 मीटर में थक जाए।
लेकिन अगर यह तैयारी 200 मीटर दौड़ के हिसाब से की जाए तो सुनिश्चित है आप 100 मीटर की दौड़ बगैर किसी बाधा के अपने सभी प्रतिभागियों को पीछे छोड़ जीत लेंगे।

अब आप विचार कीजिए इस प्रकार की तैयारी अगर राजनीतिक दल के चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी स्वयं कर ले और उनके साथ वह करिश्माई नेतृत्व का भी प्रभाव मिल जाए तो परिणाम आशातीत होगा। किस कारण से मिलने वाली जीत जहां कार्यकर्ताओं के मनोबल को आठ में आसमान पर ले जाती है चुनाव लड़ रहे नेताओं की प्रतिष्ठा में भी चार चांद लगती है। फिर भी ना जाने किन कारणों से प्रत्याशी इस प्रकार की तैयारियां करने की जगह अपने टिकट के लिए पार्टी के प्रमुख और अपने पसंदीदा उच्च पदस्थ नेताओं के परिक्रमा में अपना समय गवा देते। इसके बाद परिणाम अगर मनचाहा नहीं मिला तो दोष स्वयं की कमी को देने के स्थान पर संगठन कार्यकर्ता विद्रोह इत्यादि का बहाना बनाकर दूसरों पर दोषारोपण करने लगते हैं।
भारतीय राजनीति की एक परिपाटी रही है कि जिसने जमीन से जुड़कर स्वयं के भरोसे चुनाव जीतने का काम किया है आगे चलकर वहीं देश के लिए आदर्श भी बने हैं।
लेकिन यह आदर्श बनने की होड़ आजकल गणेश परिक्रमा के कारण कहीं पीछे छूटती नजर आ रही है।
अभी समय है कि राजनीतिक दल के प्रमुखों को अपने दल की मर्यादा को बनाए रखने के लिए जनता को जनता के सुख-दुख का सहयोगी और समर्पित नेता देने के लिए उन्हें संगठन और नेताओं की परिक्रमा से परहेज करवाने के लिए कोई नीति तय करनी होगी।

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