सोमवार, 23 मार्च 2020

घर में कुछ दिनों के लिए रहे या दुनिया हमेशा के लिए छोड़ें, चयन हमारा

महामारी का रूप ले चुके "कोरोना"को हराना है या जिन्दगी हारना है

सम्राट कुमार 

समूचे विश्व में महामारी का रूप ले चुके "कोरोना" को हराना या उससे जिन्दगी हारना है इसका निर्णय अब हमारे हाथो में है| क्योकिं इस मर्ज की कोई दवा अब तक ईजाद नहीं हो सकी है इसलिए बचाव ही एकमात्र इसका निदान भी है और उपाय भी|
यह एक प्रकार से फैलने वाला रोग है जिससे हम एकांतवास के द्वारा ही रोक पाने में सझम हो सकते है|

इसे आप यूँ समझे की आप-हम विभिन्न कारणों से बाहर रहते या जाते है इस दौरान हमें यह नहीं पता होता की हम जिसके सम्पर्क में आ रहे है उसमे से कौन संक्रमित है या नहीं | इस दौरान गलती से भी आप किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आ गए तो आप तो संक्रमित होंगे ही ये संक्रमण आपके द्वारा आपके पुरे परिवार को लग जाएगा| चुकीं आपके आसपास के लोग यह सोच कर की आपके परिवार का कोई भी सदस्य संक्रमित नहीं है आपके सम्पर्क में आकर संक्रमण का शिकार हो जाएगा |

गौर कीजिए एक की गलती से कितने लोग धीरे-धीरे संक्रमित हो रहे है | तो क्या आप चाहेंगे की जिस परिवार की हंसी-ख़ुशी के लिए आप जी तोड़ मेहनत करते है वे इस बीमारी की चपेट में आये वो भी आपके कारण | ऐसे में अपने लिए,अपने परिवार के लिए सबसे सुरझित मार्ग तो यही है की कुछ दिनों के लिए हम घर पर ही रहे |

लाखोँ  लोगों को अपने चपेट में ले चुके इस वायरस से अब तक हजारों की मौत हो चुकी है और वो भी दुनिया के सबसे अमीर और व्यवस्थित चिकित्सा व्यवस्था वाले देश अमेरिका,इटली,चीन,फ़्रांस एवं अन्य यूरोपियन देशो में| वजह केवल एक थी वे भी इसकी भयावहता को मजाक में ले रहे थे, परिणाम आपके सामने है 

22 मार्च को जब हम सबने हमारे यस्शवी प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के आग्रह पर एक दिन की जनता कर्फ्यू को सफल बनाया तो दुनिया को लगा की भारत के अनुशासनप्रिय लोग कोरोना को बिना ज्यादा मेहनत के हरा देंगे, लेकिन अगले ही दिन हमने दुनियाभर के लोगों के इस विश्वास को तोड़ दिया 
लाकडाउन के बाद हमारा सडको पर उतरना इस खतरे को खुला निमन्त्रण है और हमारे 22 मार्च के प्रयास पर पानी फिर गया 

सरकार का कार्य जनता की सुरझा है लेकिन जब जनता स्वयं अपना अहित करने पर आमदा हो जाए तो कर्फ्यू जैसे सख्त कदम उठाने पड़ते है क्योकि हम है तो देश है 

इसलिए अब भी समय है कोरोना को हराने की जंग में हम स्वयं को कुछ दिनों के लिए घर के अन्दर रहकर, सरकार के निर्देशों का पालन कर "कोरोना" को हरा सकते है ,
अन्यथा "कोरोना " हमें हराने तो आ ही चूका है 
तय कीजिए कोरोना या जिन्दगी

रविवार, 15 मार्च 2020

भारतीय नववर्ष की विशेषता, ऐतिहासिक महत्व, प्राकृतिक महत्व

भारतीय नववर्ष की विशेषता:-

ग्रंथों में लिखा है कि जिस दिन सृष्टि का चक्र प्रथम बार विधाता ने प्रवर्तित किया, उस दिन चैत्र शुदी १ रविवार था। हिन्दू नववर्ष अंग्रेजी माह के मार्च - अप्रैल में पड़ता है। इसी कारण भारत मे सभी शासकीय और अशासकीय कार्य तथा वित्त वर्ष भी अप्रैल (चैत्र) मास से प्रारम्भ होता है।

चैत्र के महीने के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि (प्रतिपद या प्रतिपदा) को सृष्टि का आरंभ हुआ था। हमारा नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को शरू होता है। इस दिन ग्रह और नक्षत्र मे परिवर्तन होता है। हिन्दी महीने की शुरूआत इसी दिन से होती है।

पेड़-पोधों मे फूल,मंजर,कली इसी समय आना शुरू होते है, वातावरण मे एक नया उल्लास होता है जो मन को आह्लादित कर देता है। जीवो में धर्म के प्रति आस्था बढ़ जाती है। इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था। भगवान विष्णु जी का प्रथम अवतार भी इसी दिन हुआ था। नवरात्र की शुरुआत इसी दिन से होती है। जिसमे हमलोग उपवास एवं पवित्र रह कर नव वर्ष की शुरूआत करते है।

परम पुरूष अपनी प्रकृति से मिलने जब आता है तो सदा चैत्र में ही आता है। इसीलिए सारी सृष्टि सबसे ज्यादा चैत्र में ही महक रही होती है। वैष्णव दर्शन में चैत्र मास भगवान नारायण का ही रूप है। चैत्र का आध्यात्मिक स्वरूप इतना उन्नत है कि इसने वैकुंठ में बसने वाले ईश्वर को भी धरती पर उतार दिया।

न शीत न ग्रीष्म। पूरा पावन काल। ऎसे समय में सूर्य की चमकती किरणों की साक्षी में चरित्र और धर्म धरती पर स्वयं श्रीराम रूप धारण कर उतर आए, श्रीराम का अवतार चैत्र शुक्ल नवमी को होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि के ठीक नवे दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था। आर्यसमाज की स्थापना इसी दिन हुई थी। यह दिन कल्प, सृष्टि, युगादि का प्रारंभिक दिन है। संसारव्यापी निर्मलता और कोमलता के बीच प्रकट होता है हमारा अपना नया साल * *विक्रम संवत्सर विक्रम संवत का संबंध हमारे कालचक्र से ही नहीं, बल्कि हमारे सुदीर्घ साहित्य और जीवन जीने की विविधता से भी है।

कहीं धूल-धक्कड़ नहीं, कुत्सित कीच नहीं, बाहर-भीतर जमीन-आसमान सर्वत्र स्नानोपरांत मन जैसी शुद्धता। पता नहीं किस महामना ऋषि ने चैत्र के इस दिव्य भाव को समझा होगा और किसान को सबसे ज्यादा सुहाती इस चैत मेे ही काल गणना की शुरूआत मानी होगी।

चैत्र मास का वैदिक नाम है-मधु मास। मधु मास अर्थात आनंद बांटती वसंत का मास। यह वसंत आ तो जाता है फाल्गुन में ही, पर पूरी तरह से व्यक्त होता है चैत्र में। सारी वनस्पति और सृष्टि प्रस्फुटित होती है, पके मीठे अन्न के दानों में, आम की मन को लुभाती खुशबू में, गणगौर पूजती कन्याओं और सुहागिन नारियों के हाथ की हरी-हरी दूब में तथा वसंतदूत कोयल की गूंजती स्वर लहरी में।

चारों ओर पकी फसल का दर्शन, आत्मबल और उत्साह को जन्म देता है। खेतों में हलचल, फसलों की कटाई , हंसिए का मंगलमय खर-खर करता स्वर और खेतों में डांट-डपट-मजाक करती आवाजें। जरा दृष्टि फैलाइए, भारत के आभा मंडल के चारों ओर। चैत्र क्या आया मानो खेतों में हंसी-खुशी की रौनक छा गई।

नई फसल घर मे आने का समय भी यही है। इस समय प्रकृति मे उष्णता बढ्ने लगती है, जिससे पेड़ -पौधे, जीव-जन्तु मे नव जीवन आ जाता है। लोग इतने मदमस्त हो जाते है कि आनंद में मंगलमय गीत गुनगुनाने लगते है। गौर और गणेश कि पूजा भी इसी दिन से तीन दिन तक राजस्थान मे कि जाती है। चैत शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन सूर्योदय के समय जो वार होता है वह ही वर्ष में संवत्सर का राजा कहा जाता है, मेषार्क प्रवेश के दिन जो वार होता है वही संवत्सर का मंत्री होता है इस दिन सूर्य मेष राशि मे होता है।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :
1) इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना प्रारंभ की।
2) सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारंभ होता है।
3) प्रभु श्री राम के राज्याभिषेक का दिन यही है।
4) शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात् नवरात्र का पहला दिन यही है।
5) सिखो के द्वितीय गुरू श्री अंगद देव जी का जन्म दिवस है।
6) स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की एवं कृणवंतो विश्वमआर्यम का संदेश दिया।
7) सिंध प्रान्त के प्रसिद्ध समाज रक्षक वरूणावतार भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
8) राजा विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। विक्रम संवत की स्थापना की ।
9) युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।
10) संघ संस्थापक प.पू.डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।
11) महर्षि गौतम जयंती

भारतीय नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :
1) वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है जो उल्लास, उमंग, खुशी तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरी होती है।
2) फसल पकने का प्रारंभ यानि किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है।
3) नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिये यह शुभ मुहूर्त होता है।
भारतीय नववर्ष कैसे मनाएँ :
1) हम परस्पर एक दुसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें। पत्रक बांटें , झंडे, बैनर....आदि लगावे ।
2) आपने परिचित मित्रों, रिश्तेदारों को नववर्ष के शुभ संदेश भेजें।
3) इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों पर भगवा पताका फेहराएँ।
4) आपने घरों के द्वार, आम के पत्तों की वंदनवार से सजाएँ।
5) घरों एवं धार्मिक स्थलों की सफाई कर रंगोली तथा फूलों से सजाएँ।
6) इस अवसर पर होने वाले धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें अथवा कार्यक्रमों का आयोजन करें।
7) प्रतिष्ठानों की सज्जा एवं प्रतियोगिता करें। झंडी और फरियों से सज्जा करें।
8) इस दिन के महत्वपूर्ण देवताओं, महापुरुषों से सम्बंधित प्रश्न मंच के आयोजन करें।
9) वाहन रैली, कलश यात्रा, विशाल शोभा यात्राएं कवि सम्मेलन, भजन संध्या , महाआरती आदि का आयोजन करें।
10) चिकित्सालय, गौशाला में सेवा, रक्तदान जैसे कार्यक्रम।

शुक्रवार, 13 मार्च 2020

ये कैसी राजनीति, जंहा वोट के अलावे कुछ भी समझ काम नहीं आती

भारत में आज-कल सब कुछ दो भागों में बंटा,एक के लिए देश से बड़ा कुछ नहीं दुसरे के लिए सत्ता से बड़ा कुछ नहीं 

 सम्राट कुमार 
आज-कल सड़क से संसद तक,सरकारी कार्यालयों से न्यायपालिका तक,जनता से लेकर नेता तक और यंहा तक की मिडिया हॉउस तक दो विचारधाराओं में बंटे-बंटे साफ़ दिख रहे है| गर एक शब्दों में कहे तो प्रजातंत्र के चारों स्तंभ दो विपरीत विचार धारा में विभक्त हो गए प्रतीत होते है|

इनमें एक विचारधारा है "राष्ट्रवाद"की तो दूसरी "स्वार्थवाद" की| अब भले ही एक पझ राष्ट्रवाद को साम्प्रदायिक कहे या हिटलरशाही लेकिन सत्य तो यही है की जनमत आज राष्ट्रवाद के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है|

शुरुआत सबसे प्रखर स्तंभ अर्थात मिडिया से करते है| आज केंद्र की मोदी सरकार के हर कार्य को लेकर मिडिया विभक्त है| एक ओर ऐसे पत्रकार है जो सरकार के कार्यो का समर्थन या विरोध उसके गुण-दोष के आधार पर करती है तो दूसरी ओर ऐसे पत्रकार है जिनका मूल उद्देश्य ही सरकार के हर कार्य का विरोध करना बन गया हो ठीक विपझ के नेताओं की तरह|
अब इसे हालिया दिल्ली दंगा प्रकरण से हमें इसे समझने में आसानी होगी| आपने देखा होगा कुछ मिडिया में दंगो में हुयी मौत,संपति हानि,एवं दो सरकारी रझा कर्मी की मौत को अपनी खबर का केंद्र बिंदु बनाया| जबकि कुछ इसे एक धर्म विशेष के कथित मानवधिकार, उत्पीडन,और सरकार की नाकामी बता उनके रझा कवच स्वयं को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी |

जारी.............