भारत में आज-कल सब कुछ दो भागों में बंटा,एक के लिए देश से बड़ा कुछ नहीं दुसरे के लिए सत्ता से बड़ा कुछ नहीं
सम्राट कुमार
आज-कल सड़क से संसद तक,सरकारी कार्यालयों से न्यायपालिका तक,जनता से लेकर नेता तक और यंहा तक की मिडिया हॉउस तक दो विचारधाराओं में बंटे-बंटे साफ़ दिख रहे है| गर एक शब्दों में कहे तो प्रजातंत्र के चारों स्तंभ दो विपरीत विचार धारा में विभक्त हो गए प्रतीत होते है|
इनमें एक विचारधारा है "राष्ट्रवाद"की तो दूसरी "स्वार्थवाद" की| अब भले ही एक पझ राष्ट्रवाद को साम्प्रदायिक कहे या हिटलरशाही लेकिन सत्य तो यही है की जनमत आज राष्ट्रवाद के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है|
शुरुआत सबसे प्रखर स्तंभ अर्थात मिडिया से करते है| आज केंद्र की मोदी सरकार के हर कार्य को लेकर मिडिया विभक्त है| एक ओर ऐसे पत्रकार है जो सरकार के कार्यो का समर्थन या विरोध उसके गुण-दोष के आधार पर करती है तो दूसरी ओर ऐसे पत्रकार है जिनका मूल उद्देश्य ही सरकार के हर कार्य का विरोध करना बन गया हो ठीक विपझ के नेताओं की तरह|
अब इसे हालिया दिल्ली दंगा प्रकरण से हमें इसे समझने में आसानी होगी| आपने देखा होगा कुछ मिडिया में दंगो में हुयी मौत,संपति हानि,एवं दो सरकारी रझा कर्मी की मौत को अपनी खबर का केंद्र बिंदु बनाया| जबकि कुछ इसे एक धर्म विशेष के कथित मानवधिकार, उत्पीडन,और सरकार की नाकामी बता उनके रझा कवच स्वयं को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी |
जारी.............
सम्राट कुमार
आज-कल सड़क से संसद तक,सरकारी कार्यालयों से न्यायपालिका तक,जनता से लेकर नेता तक और यंहा तक की मिडिया हॉउस तक दो विचारधाराओं में बंटे-बंटे साफ़ दिख रहे है| गर एक शब्दों में कहे तो प्रजातंत्र के चारों स्तंभ दो विपरीत विचार धारा में विभक्त हो गए प्रतीत होते है|
इनमें एक विचारधारा है "राष्ट्रवाद"की तो दूसरी "स्वार्थवाद" की| अब भले ही एक पझ राष्ट्रवाद को साम्प्रदायिक कहे या हिटलरशाही लेकिन सत्य तो यही है की जनमत आज राष्ट्रवाद के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है|
शुरुआत सबसे प्रखर स्तंभ अर्थात मिडिया से करते है| आज केंद्र की मोदी सरकार के हर कार्य को लेकर मिडिया विभक्त है| एक ओर ऐसे पत्रकार है जो सरकार के कार्यो का समर्थन या विरोध उसके गुण-दोष के आधार पर करती है तो दूसरी ओर ऐसे पत्रकार है जिनका मूल उद्देश्य ही सरकार के हर कार्य का विरोध करना बन गया हो ठीक विपझ के नेताओं की तरह|
अब इसे हालिया दिल्ली दंगा प्रकरण से हमें इसे समझने में आसानी होगी| आपने देखा होगा कुछ मिडिया में दंगो में हुयी मौत,संपति हानि,एवं दो सरकारी रझा कर्मी की मौत को अपनी खबर का केंद्र बिंदु बनाया| जबकि कुछ इसे एक धर्म विशेष के कथित मानवधिकार, उत्पीडन,और सरकार की नाकामी बता उनके रझा कवच स्वयं को बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी |
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