बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

केन्द्र का शासकवर्ग यौवन अवस्था की चंचलता में , जनता का करे कौन विचार


कहते है कि यौवन अवस्था में मन चंचल होता है, और विचार कभी स्थिर नहीं रहते है, और इस उम्र में कभी यह करु यह नहीं करु का विचार  बसंत रितु के उमड़-घुमड़ बादल की तरह आता-जाता रहता है। ठीक यही सब कुछ केन्द्र की सत्ता में आसीन कांग्रेस गठबंधन सरकार के साथ भी हो रहा है। कहने को तो 79 बसंत देख चुके हमारे प्रधान मंत्री और उनके मंत्रि-मंडल के सहयोगी उम्र तन प्रोढ़ है किंतु जन आकांक्षा के अनुरूप अब तक वैचारिक, सैद्धांतिक, या निति गत रुप से अपने को प्रोढ़ साबित नहीं कर सके है।यही कारण है कि जनता की गाढी कमाई से जमा धन भांडार का अपव्यय सरकार की दिनचर्या बन गई है। चाहे वह घोटालो के रुप में हो, निर्णय बदल ने के रुप में हो या शक्तिशाली बनने के लिए किसी अन्य देश में एक दशक पुर्व इस्तेमाल की गई तकनीक को अपना ने की हो, हर जगह मार आर्थिक रुप से जनता को ही सहनी पड़ रही है। मामला चाहे कभी बाबा रामदेव की भ्रष्टाचार विरोधी रैली में अर्द्द्-रात्री मे लाठी चलवाकर निर्दोषो की पिटाई का हो, अन्ना के जन लोकपाल आंदोलन के दौरान अन्ना एवं उनके सहयोगी यो को जेल भेज कर फिर जना आक्रोश के मद्देनजर रात्री में ही रिहाई करवाने और आंदोलन के लिए जगह उपलब्ध करने का हो, चीन के बठते सीमा-पार घुस-पैठ पर चुप्पी का हो, बटला हाउस मुठ-भेड़ का हो, सेनाध्यक्ष की उम्र का हो या विकास के प्रतीक बन गये गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ का हो, गाहे-बगाहे हर बार सरकार, कांग्रेस और इसके करता-धर्ता चंचलता का परिचय देते रहते है। जबकि ऐसे मुद्दों पर जनता की चाह प्रौढ़ता और दिशा देने वाली कार्य  और बयान की होती है।

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