रविवार, 8 जनवरी 2012

आँनर किलींग का स्याह पक्ष आँनर सुसाइड



आँनर किलींग अथार्त सम्मान,इज्जत के लिए हत्या। यह चर्चा आज चाय की चुस्की-यो के साथ गाँव की चौपाल से लेकर न्याय पालिका की उच्च कुर्सी तक होने वाली विषयों में प्रमुखता से शामिल है। इस मुद्दे पर समाज की परम्पराओं, सोच की गहराई, आर्थिक विषमता को लेकर मत भिन्नता हो सकती है। किंतु इस आँनर किलींग का एक स्याह पक्ष यह भी है की आँनर के लिए सिर्फ हत्या ही नही की जाती है, आत्म-हत्या भी होती है। सम्मान-इज्जत के लिए हत्या और आत्म हत्या। एक सच के दो पहलू है। किंतु पहले पक्ष को चर्चा मिलती है और दूसरे पक्ष को गुम नामी। ऐसा क्यों। इस बाबत हालिया मेरे परिचित के साथ हुई घटना से मुझे जवाव मिला। जब किसी नये उम्र के अपरिपक्व युवक और युवती द्वारा समाज, धर्म, परम्पराओं, जाति, एवं समूहों दावरा कायम नियमों के विरुद कोई कार्य किया जाता है और इनकी हत्या कर दी जाती है तो मामला तुल पकड़ लेता है, वही जब किसी नये उम्र के अपरिपक्व युवक और युवती द्वारा समाज, धर्म, परम्पराओं, जाति, एवं समूहों दावरा कायम नियमों के विरुद कोई कार्य किया जाता है और इस शर्मिदगी के कारण माता-पिता अगर आत्म-हत्या करते है तो मामला शांत हो जाता है, यह कहकर कि अमुक लड़का या लड़की के करनी का फल मिला है और फिर उस युवक और युवती के कृत्य को लोगों की मौन स्वीकृति मिल जाती है चाहे वह सहानुभूति के रुप में हो या परिणाम के असर के कारण हो। अंतत: मौत के बाद ही लोग चुप हो जाते है। अर्थात हत्या या आत्म-हत्या के बाद लोगों की चुप्पी का एक ही मकसद द्रिष्टिगोचर् होता है की ऐसी वारदातों के बाद उन्हें खुन बहते हुये दिखना चाहिये चाहे वह जिस रुप में दिखे।  क्या यह एक सभ्य समाज का लक्षण है। कदापि नहीं। किंतु इस पर चर्चा क्यों नहीं?
                          मेरे एक बुजुर्ग मित्र ने गत दिनों आत्म-हत्या कर ली। बुजुर्ग मित्र कहने का अभिप्राय यह है कि मेरे पेशा में हर तरह और हर उम्र  के लोगों से सम्बन्ध रखना पड़ता है । नाम और जगह मैं नहीं लिख सकता हुँ, क्योंकि हमारा मानना है कि मरने वाला दुनिया के समस्त सांसारिक सम्बन्धों से मुक्त हो जाता है और उनके नाम की चर्चा उचित नहीं है। प्रसंग यह है कि उनकी लड़की भी उपर्युक्त कथित समाज विरोधी कार्य कर रही थी। इसकी जानकारी जब उनके परिजनों को मिली तो उन्होंने उसे मान-मर्यादा का हवाला देते हुये ऐसा करने से मना किया। फलत: अपने मनोनुकल कार्य न होता जान लड़की ने जहर खाकर आत्म-हत्या की कोशिश की। अभिभावको ने संतान मोह के कारण किसी प्रकार उसकी जान बचा ली। इसके बाद भी लड़की अपने जिद पर अडिग और परिजन लोक-लज्जा के कारण उसे उसकी मनमानी की छुट नहीं दे रहे थे। ऐसे में आम परिवार की तरह उस पर तमाम तरह की पाबंदी लाद दी गई। पर उसके विचार में कोई परिवर्तन नहीं आया। परिणाम मेरे मित्र ने सभी परिस्थितियों के आगे अपने को वे वश पाते हुये आत्म-हत्या कर ली। अब समाज में इसकी चर्चा भी बंद हो गई और लड़की भी शांत हो गई।       
                              क्रमशः: 
                         

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

thank"s for comment