शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

शासन बदला, प्रशासन बदला पर नहीं बदली तो हालात

 बिहार सरकार एवं एन.टी.पी.सी के संयुक्त उधम काँटी थर्मल पावर स्टेशन के लिए उपर्युक्त जुमला सटीक है। बिहार राज्य बि धुत बोर्ड के पूर्ण स्वामित्व वाले इस प्रतिष्ठान को एन.टी.पी.सी के हवाले करने से कोई अलग नतीजा नहीं निकला । नतीजा ठाक के तीन पात वाली रही। बिजली का वार्षिक औसत उत्पादन में कोई अलग उपलब्धि हासिल नहीं हो सका । थर्मल तब भी और अब भी पैसों की किल्लत के कारण ठप ही रहता है। अंतर आया तो इतना कि पहले पैसा बिहार राज्य बि धुत बोर्ड से अनुरोध करके मंगाया जाता था अब बकाया चुकाने का फरमान भेजा जाता है।                                                                                  
अब सवाल यह है कि इसमें चौ कने वाली बात क्या है? तो ठेठ भाषा में इसे इस तरह समझ सकते है।  आप अपनी दुकान की इस आशा में साझेदारी करते है कि आपके साझेदार के साख और व्यापार करने के कला से आपकी दुकान खूब चलेगी और मुनाफ़ा भी खूब होगा । इस प्रत्याशा में आप 100 रुपये के दुकान की बराबर की साझेदारी अपने साझेदार को मात्र 25 रुपये में दे देते है। इसके बाद आपको पता चलता है कि दुकानदारी तो बढी नहीं मुनाफ़ा भी वही रहा । तो आपको मिला क्या? हिसाब किया तो पाया कि दुकान में साझेदार की हिस्सेदारी भी 51% से बढ़कर 74% हो गयी और  साझेदार का बकाया भी आप पर चढ़ गया। यही हाल बिहार राज्य बि धुत बोर्ड और एन.टी.पी.सी के इस संयुक्त उपक्रम का है। (सच्चाई के लिए http://www.ntpcindia.com/index.php?option=com_content&view=article&id=67&Itemid=114&lang=hn देखे)  । क्रमशः
अखबार में प्रकाशित खबर की कतरन

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