बिहार सरकार के भूमि राजस्व विभाग में बरसों से कार्यरत है "भगवान"
सम्राट कुमार
जी आपने सही शीर्षक पढा है। यह किसी कवि की कल्पना नहीं और ना ही कोई आकर्षक शीर्षक है, बल्कि यह भूमि राजस्व विभाग के मुजफ्फरपुर जिला में भूमि सुधार उप समाहर्ता पश्चिमी के एक निर्णय के अवलोकन से यह सत्य जाहिर हुआ है।
बिहार सरकार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 11 सितंबर 2019 को पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा था कि बिहार में कुल अपराध में 60 फ़ीसदी अपराध भूमि विवाद के कारण होते हैं। मुख्यमंत्री की इस स्वीकारोक्ति एवं भूमि सुधार उप समाहर्ता पश्चिमी के आदेश को अगर एक परिपेक्ष में रखें तो पता चलता है कि बिहार में हजारों करोड़ खर्च कर होने वाले चकबंदी व्यर्थ है। क्योकि अगर पुराने विवाद ही समाप्त नहीं हुए तो नए चकबंदी से विवाद हटेगा नहीं और बढ़ जाएगा
आपके मन में यह जिज्ञासा आपको परेशान कर रही होगी कि आखिर बिहार भूमि राजस्व विभाग में भगवान कैसे नियुक्त है। आइए आपकी इस उत्कंठा को हम शांत करते हैं। दरअसल मुजफ्फरपुर जिले के भूमि सुधार उप समाहर्ता पश्चिमी द्वारा दाखिल खारिज वाद संख्या 163/12-13 में दिनांक 29-9 -2016 को पारित आदेश में लिखा है कि उत्तर वादी संख्या एक के वारिसों ने दिनांक 22 फरवरी 2017 को एक आवेदन दिया जिसमें उन्हें पक्षकार बनाने की बात कही गई थी।
अब आप ही बताएं अपने आदेश के 5 महीने बाद होने वाली घटना को तारीख सहित अपने आदेश में उल्लेख करने वाले पदाधिकारी क्या सामान्य इंसान होंगे। भविष्य में नियत तारीख को क्या होगा यह ईश्वर के अलग है कोई नहीं जानता। ऐसे में भूमि राजस्व विभाग के भूमि सुधार उप समाहर्ता पश्चिमी क्या भगवान से कम है?
अब आते हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा अपराध में 60% योगदान भूमि विवाद के संदर्भ पर। इसी आदेश के अगले पंक्ति में भूमि सुधार उप समाहर्ता पश्चिमी या कहें भगवान ने कहा है कि चुकी विवादित जमीन पर मकान है इसलिए दाखिल खारिज कैंसिल नहीं किया जा सकता है। मुजफ्फरपुर में वरीय आरक्षी अधीक्षक आवास के पास के सिकंदरपुर मन की जमीन को भी बहुत सारे लोगों ने दाखिल खारिज करा कर मकान बना लिया है। इस आदेश के अनुसार वह सारे वैध होगा।
अंत मे मुख्यमंत्री की बात और निर्णय के अवलोकन के पश्चात यही निष्कर्ष निकलता है कि बिहार में भूमि विवाद को बढ़ावा देने में आम लोगों से ज्यादा बिहार भूमि राजस्व विभाग के "कथित भगवान" की भूमिका ज्यादा है। अब निर्णय के दूसरे पहलू पर नजर डालें तो यह भी संभावना बनती है कि उक्त भूमि सुधार उप समाहर्ता ने अपने स्थानतरण के बाद जब इस मामले की पैरवी करने विपक्षी पार्टी ने किसी तरह से सेटिंग कर ली तो 22 फरवरी 2017 को आवेदन दिया और उस आवेदन के आलोक में स्थानांतरित भूमि सुधार उप समाहर्ता ने पूर्व की तारीख में अपना निर्णय दिया। लेकिन वह कहते हैं ना की
"सत्यमेव जयते " लाख झूठ को छिपाने का प्रयास करो सत्य में वो ताप है प्रकट हो ही जाएगा
बेहतरीन और खोजपूर्ण
जवाब देंहटाएंआजकल समाचार पत्रों में इस प्रकार की खबरें नहीं मिलती।
धन्यवाद