शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नाम नगर पर काम पंचयात से भी कम, (हाल नगर पंचयात कांटी का)



   जी हाँ नाम है नगर पंचायत ,पर काम की बात करे तो पंचायत से भी कम। यह है काँटी नगर पंचायत की जमीनी हकीकत ! वर्ष 2002 में नगर पंचायत का दर्जा बिहार के तिरहुत प्रमंडल अंतर्गत मुजफ्फरपुर जिला के काँटी कसवा नामक पंचायत को मिला। इससे इस क्षेत्र के लोगों में विकास को लेकर काफी आशाए  जागी। आम-आवाम  ने इसकी  काफी सराहना की। नतीजा चुनाव में लोगों ने जमकर मतदान किया। लेकिन आज जब इस क्षेत्र को दर्जा मिले 10 वर्ष पूरे हो गये है और तीसरा चुनाव भी सर पर खरा है, तब लोग एक दूसरे से यह पता करना चाह रहे है कि मिला क्या।वर्ष 2002 में कुल 12 वार्ड एवं वर्ष 2007 में कुल 14 वार्ड के लिए काँटी नगर पंचायत में प्रतिनिधि चुने गये थे। इन जन प्रतिनिधियों ने अब तक तीन अध्यक्ष दो बार के कार्य काल में बनाया। इतना ही नहीं तीन बार अविश्वास प्रस्ताव भी अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के विरुध पेश कर चुके है। 
                                                      अब वारी है विकास के कहानी की। 
नगर पंचायत के कुल वार्ड में कमोवेश सभी वार्डो में पी सीसी सड़क बन चुका है। लेकिन यहाँ के लोगों प्यास बुझाने के लिए बना पेय जल आपूर्ति केन्द्र तो है किंतु पानी तब ही उपलब्ध होती है जब बिजली हो। भण्डारण की कोई सुविधा नहीं है। कहने को तो थर्मल पावर  काँटी में ही है लेकिन बिजली कब आती और कब जाती है आपको पता ही नहीं लगेगा। 
क्रमशः 
अखबार में प्रकाशित खबर की कतरन

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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

शासन बदला, प्रशासन बदला पर नहीं बदली तो हालात

 बिहार सरकार एवं एन.टी.पी.सी के संयुक्त उधम काँटी थर्मल पावर स्टेशन के लिए उपर्युक्त जुमला सटीक है। बिहार राज्य बि धुत बोर्ड के पूर्ण स्वामित्व वाले इस प्रतिष्ठान को एन.टी.पी.सी के हवाले करने से कोई अलग नतीजा नहीं निकला । नतीजा ठाक के तीन पात वाली रही। बिजली का वार्षिक औसत उत्पादन में कोई अलग उपलब्धि हासिल नहीं हो सका । थर्मल तब भी और अब भी पैसों की किल्लत के कारण ठप ही रहता है। अंतर आया तो इतना कि पहले पैसा बिहार राज्य बि धुत बोर्ड से अनुरोध करके मंगाया जाता था अब बकाया चुकाने का फरमान भेजा जाता है।                                                                                  
अब सवाल यह है कि इसमें चौ कने वाली बात क्या है? तो ठेठ भाषा में इसे इस तरह समझ सकते है।  आप अपनी दुकान की इस आशा में साझेदारी करते है कि आपके साझेदार के साख और व्यापार करने के कला से आपकी दुकान खूब चलेगी और मुनाफ़ा भी खूब होगा । इस प्रत्याशा में आप 100 रुपये के दुकान की बराबर की साझेदारी अपने साझेदार को मात्र 25 रुपये में दे देते है। इसके बाद आपको पता चलता है कि दुकानदारी तो बढी नहीं मुनाफ़ा भी वही रहा । तो आपको मिला क्या? हिसाब किया तो पाया कि दुकान में साझेदार की हिस्सेदारी भी 51% से बढ़कर 74% हो गयी और  साझेदार का बकाया भी आप पर चढ़ गया। यही हाल बिहार राज्य बि धुत बोर्ड और एन.टी.पी.सी के इस संयुक्त उपक्रम का है। (सच्चाई के लिए http://www.ntpcindia.com/index.php?option=com_content&view=article&id=67&Itemid=114&lang=hn देखे)  । क्रमशः
अखबार में प्रकाशित खबर की कतरन

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